



अलीनगर प्रखंड स्थित नरमा में चल रहे भागवत कथा का तीसरा दिन भगवान की आश्था में डूबा प्रखंडवासी ईश्वर की असीम कृपा की प्राप्ति का एक मात्र भक्ति मार्ग ही है जिसके बिना आनंदमयी जीवन की कल्पना भी संभव नहीं है। उक्त बातें सोमवार को नरमा गाँव में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन आचार्य वेदानंद शास्त्री “आनंद”जी ने कही।उन्होंने राजा परीक्षित और सुकदेव संवाद तथा उद्धव-विदुर संवाद की ख़ास चर्चाएँ करते हुए जीवन मुक्ति के लिए भगवान् नारायण के सुमार्ग को अपनाने को कहा । आरम्भ काल में ही मनुष्य को चार वर्गों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र की चर्चाएँ करते हुए कहा कि ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए मानव को सबसे पहले शुद्र अर्थात सेवक बनना होता है। वैसे मानव जिन्होंने जीवन में शुद्र बनना नहीं चाहता हो वैसा व्यक्ति कभी ही धर्मपरायण नहीं हो सकता है। भगवान राम द्वारा शुद्र महिला सबरी के जूठन बैर को खाने की चर्चाएँ करते हुए कहा कि भगवान नारायण कभी भी धन की भूखा नहीं बल्कि भाव और अगाध प्रेम की भूखा होती है। और जिन्होंने जीवन में हर प्राणी के लिए जाति और धर्म से ऊपर उठकर सच्चा भाव एवं प्रेम की भावना नहीं रखता हो वैसा मनुष्य काफी सांसारिक सुखों के बावजूद भी आनंदमयी जीवन का सुख नहीं ले पाते हैं। भागवत कथा ज्ञान के महत्त्व की व्याख्यान करते हुए कहा कि केवल प्रभू वचन को सून लेने और सूना देने मात्र से नहीं, बल्कि भगवान नारायण के सुमार्गों को जीवन में अपनाने से असली सुख और समृद्धि मिलती है। भक्ति योग की महिमा की व्याख्यान करते हुए सती अनुसुईया, बाल ध्रूव और प्रह्लाद की कथा की चर्चाएँ करते हुए कहा कि मानव को जीवन में कभी अभिमान नहीं करना चाहिए।क्योंकि भगवान नारायण को कभी भी अभिमान पसंद नहीं होता और वैसे लोगों की अंजाम काफी बुरा होता है।
Reported by : एम राजा 02/01/2017