जितिया उपास केर पौराणिक कथा

Benipur News

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प्राचीनकाल में जीमूतवाहन नामक एकटा राजा छलाह । ओ बहुत धर्मात्मा, परोपकारी, दयालु, न्यायप्रिय आ प्रजा के पुत्रक भाँति प्रेम करैत छलाह। एक बेर शिकार करबाक लेल मलयगिरि पर्वत पर गेलाह। ओहिठाम हुनकर भेंट मलयगिरि के राजकुमारी मलयवती सँ भ गेलनि ,जे कि ओतय पूजा करय सखी बहिनपाक संग आयल छलीह। दूनु एक दोसर के पसीन क लेलनि। ओहि ठाम मलयवती के भाई सेहो आयल छलाह। मलयवती केर पिता बहुत दिन सँ जीमूतवाहनक संग अपन बेटीक विवाह करेबाक चिन्ता में छलाह। अतः जखन मलयवती के भाई के पता चललनि कि जीमूतवाहन और मलयवती एक दोसर के चाहैत छथि त ओ बहुत खुश भेलाह, और अपन पिता के ई शुभ समाचार देबाक लेल चलि गेलाह।
एमहर मलयगिरिक चोटी पर घुमैत राजा जीमूतवाहन दूर सँ कोनो स्त्रीक कनबाक अवाज सुनलनि। हुनक दयालु हृदय विह्वल भ’अ उठल। ओ ओहि स्त्रीक समीप पहुँछलाह। आ सअनुरोध पुछला पर पता चललनि कि पूर्व प्रतिज्ञाक अनुसार हुनकर एकमात्र पुत्र शंखचूर्ण के आई गरुड़ के आहार के लेल जेबाक छैन। नागक संग गरुड़ के जे समझौता भेल छल तकरा अनुसार मलयगिरिक शिखर पर नित्य एकटा नाग ओकर आहारक लेल पहुँच जैत छल। शंखचूर्ण के मायक ई विपत्ति सुनि जीमूतवाहनक हृदय सहानुभूति आ करुणा सँ भैर गेलनि, कियाक त शंखचूर्ण अपन मायक वृद्धावस्थाक एक मात्र सहारा छल।
जीमूतवाहन शंखचूर्ण के माय के आश्वासन देलनि कि- माता अपने चिंता जुनि करी हम स्वयं अपनेक पुत्रक स्थान पर गरुड़क आहार बनबाक लेल तैयार छी।
जीमूतवाहन ई कहि शंखचूर्ण के हाथ सँ ओहि अवसर के लेल निर्दिष्ट लाल वस्त्र लय धारण केलनि आ हुनकर माता के प्रणाम क’अ विदाई के आज्ञा मँगलनि। नाग माता आश्चर्य में डूईब गेलीह। हुनकर हृदय करुणा सँ और बोझिल भs उठलनि आ ओ जीमूतवाहन के बहुत रोकबाक प्रयत्न केलनि, मुदा ओ कहाँ रुकै वला छलाह। ओ तुरंत गरुड़ के आहार के लेल नियत पर्वत शिखरक मार्ग पकड़लनि आ माय आ पुत्र आश्चर्य सँ हुनका जैत देखैत रहलनि।
ओमहर समय पर गरुड़ जखन अपन भोजन-शिखर पर आयल आ बड़ी प्रसन्नता सँ एमहर-ओमहर देखैत अपन भोजन पर मुँह लगेलक त ओकर प्रतिध्वनि सँ संपूर्ण शिखर गूँजयमान भs उठल। जीमूतवाहनक दृढ़ अंग पर पड़ल ओकर लोल के सेहो बड़का धक्का लगलै । ई भीषण स्वर ओहि धक्के सँ उत्पन्न भेल छल। गरुड़क माथ चकरा लागल। थोड़बा कालक पश्चात जखन गरुड़ के किछु सुधि एलै तखन ओ पूछलक- अपने के थिकौंह? हम अपनेक परिचय पयबाक लेल बेचैन भs रहल छी।
जीमूतवाहन अपने ओहि लाल वस्त्र में ओहिना लेपटल रहलाह आ कहलनि , पक्षिराज हम राजा जीमूतवाहन
छी, नागक माता के दुख हमरा सँ देखल नै गेल ताहि लेल हम ओकर स्थान पर अपनेक भोजन बनबाक लेल आबि गेलौंह, आपने निःसंकोच हमरा खाऊ।
पक्षिराज जीमूतवाहन के यश आ शौर्य के बारे में जानैत छलाह, ओ राजा के बड़ सत्कार सँ उठेलनि आ हुनका सँ अपन अपराधक क्षमा-याचना करैत हुनका सँ कोनो वरदान मंगबाक अनुरोध कयलनि।
गरुड़क बात सुनि प्रसन्नत्ता और कृतज्ञताक वाणी में राजा कहलनि- हमर इच्छा अछि कि अपने आई तक जतेक नागक भक्षण कयलौंह अछि, ओहि सभ के अपन संजीवनी विद्या के प्रभाव सँ जीवित क दीं, जाहि सँ शंखचूर्ण केर माता के समान और ककरो माता के दुःखक अवसर नै भेटै।
राजा जीमुतवाहनक अहि परोपकारिणी वाणी मे एतेक व्यथा भरल छल कि पक्षिराज गरुड़ विचलित भs उठलाह। ओ गदगद कंठ सँ राजा के वचन पूरा करबाक वरदान देलनि आ अपन अमोघ संजीवनी विद्या केर प्रभाव सँ समस्त नाग के जीवित कय देलनि।
अहि अवसर पर राजकुमारी मलयवती के पिता आ भाई सेहो जीमूतवाहन के तकैत ओतहि पहुँच गेलाह ।ओ सब ई घटना के देखि और धूमधाम सँ मलयवतीक संग जीमूतवाहनक विवाह करोलनि।
ई घटना आश्विन महीनाक कृष्ण अष्टमी के दिन घटित भेल छल, तहिये सँ समस्त स्त्री जाति में अहि उपासक महिमा व्याप्त भेल।
संकलन आ अनुवाद : नीरज मिश्र “मुन्नू”
© संस्कार मिथिला पेज

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